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Friday, August 6, 2010

प्यार और डांट का तराजू......

याद है मुझे जब मैं छोटा था तो माँ हमेशा मेरे बायं हाथ का अंगूठा देख के कहा करती थी"कि बेटा देख तेरा अंगूठा कितना मुड़ता है",


मैं हमेशा माँ से पूछा करता कि "माँ अंगूठा मुड़ने से क्या होता है"?माँ कहती"तू बहुत जल्द किसी भी परिस्थिति में अपने आप को ढालने कि क्षमता रखता है"



मैं सोचा करता कि हर छोटी छोटी बात पर मैं अपनी बहन से लड़ता हूँ,हर किसी से लड़ता हूँ वो पाने के लिए जो मुझे चाहिए होता है ,तो कहाँ से मैं कभी किसी के साथ अडजस्ट कर पाउँगा कभी?
लेकिन आज माँ की वो बात बहुत सच लगती है मुझे.


आज किसी भी माहोल में मैं रह पाता हूँ. कुछ भी खा पाता हूँ.सब को साथ रख के चलना अब आ गया है मुझे.अब पहचान पाता हूँ कि किसके साथ किस तरह से पेश आना है मुझे.


अब समझ पाता हूँ कि कौन बुरा है और कौन अच्छा.अच्छे और बुरे की पहचान करना अब मैं भली भांति सीख गया हूँ.


वैसे अगर देखा जाए तो मुझे मेरे माता-पिता ने एक बहुत सही बैलेंस के साथ पाला पोसा शुरू से ही.जब माँ के लाड प्यार के तराजू का भार ज्यादा हो जाता तो पिताजी झट से डांट के तराजू बराबर किये देते थे.अगर माँ ने मुझे खरचना सिखाया तो पिताजी एक एक रुपए की कीमत से वाकिफ करवाया.


जहा माँ ने मुझे अपना असीम प्यार दिया तो वहीँ पिताजी ने प्यार की मात्रा सही रखते हुए समय समय पर थोड़ी मार भी दी.पहले नही समझ पाता था की क्यों माँ हमेशा ही मुझे प्यार करती नज़र आती है और पिताजी ज्यादातर डांटते हुए?


पर आज सब समझ गया हूँ.आज जहाँ पर भी हूँ,जो भी कर पाया हूँ उनके इसी बेलेंसिंग प्यार और डांट के दम पर कर पाया हूँ.


मेरी ताकत मेरे माता पिता है जो आज मेरी नज़रो में मेरे भगवान् का दर्ज़ा ले चुके है. गर्व होता है ऐसे माता पिता का साथ पाकर.....




दिल से धन्यवाद.........




                                                                                                                                          मोहक शर्मा...........

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