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Friday, August 6, 2010

बारिश में भीगी आँखें.....

आज इस बारिश ने बहुत परेशान किया मुझे.सुबह से शाम तक बस आज इन्द्रदेव ही महरबान रहे.वैसे कुछ खास काम नही था आज मेरे पास.बैठे बैठे ही थक चुका था मैं,सोचा कुछ करूँ!तभी इन्द्रदेव को भी होश आया कि उन्हें भी आराम करना है और चल दिए थोडा विश्राम करने.


बारिश थम चुकी थी.कोएल की कुकु और चिड़ियों की चेहचाहट मुझे रोक ना सकी.आसमान खुल चुका था.मेरा मन भी बाहर जाने के लिए तत्पर था.घर से कुछ ही दूर सामने की तरफ एक दुकान थी.मैं सोच रहा था कि कहाँ जाऊ.उस दुकान कि तरफ अपना रुख करू या यही खड़ा रह कर चिडियों और कोएलो का साथ दूँ,ठंडी हवा का मज़ा लूँ !!!


मेरा दिल कुछ कह रहा था और दिमाग कुछ .दिल कहता कि चल थोडा निकला जाए तो दिमाग डरा हुआ था,इसे डर था कि कहीं वापिस बारिश शुरू ना हो जाए और मैं भीग ना जाऊदिल और दिमाग कि अजीबो गरीब कशमकश में मैं अपने आप को कहीं का नही पा रहा था,मेरी हालत त्रिशंकु के सामान हो चुकी थी.लेकिन उस दुकान में बन रही गरमा गरम चाय की खुशबु मुझे रोक ना सकी.
आह!दिल बोल पड़ा "क्या महक है...


आखिर जीत दिल की हुई और मैं पहुँच गया वहाँ जहाँ ये खुशबु मुझे आमंत्रण दे रही थी.दे दिया चाय का आर्डर.चाय भी हाथ में आ गयी.पर ना जाने क्यों दिल ने कहा कि इस दुकानदार से थोड़ी बातचीत की जाए.इसका कारण मैं खुद नही जानता.हो सकता कि यूँ ही ठाले बैठे बैठे बोर हो रहा था मैं.बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ.


वैसे ये कहना सरासर गलत होगा कि मैंने उसके साथ केवल बातचीत की.लेकिन ये बातचीत सिर्फ बातचीत ही नही थी बल्कि ये तो एक आप बीती थी.आप सुनेंगे तो शायद आप भी सहमत हो जायेगें मेरी बात से.फिर से पहेली बुझाना शुरू कर दिया मैंने. 


हाहा!चलिए सीधे शुरू ही किये देता हूँ.

नाम : सिद्दीकी.
गाँव: कोलकाता में बसा चूरा, एक छोटी सी जगह जहाँ रहता था एक ऐसा शख्स जिसके मन में कुछ कर गुजरने का बेखौफ जुनून था.
15 साल की उम्र वाला ये शख्स जिसके 3 भाई और माँ बाप थे.इतनी कम उम्र में ही लग गया पैसा कमाने में.कुछ बनना चाहता था वो शायद.लेकिन किस्मत किसको क्या से क्या बना दे, कोई नही जानता.क्योकि जहां कहा जाता है कि"Everything is possible even impossible says that i m possible."तो मत भूलिए जनाब कहा ये भी गया है कि" किस्मत से ज्यादा और समय से पहले कभी किसी को कुछ नही मिल पाया है."ठीक उसी तरह ये भी अपनी किस्मत से,अपने हालातो से लड़ रहा था.लक्ष्य एक ही था,और वो था कुछ बन दिखाने का.दिन रात एक करके महनत करता.खून पसीना एक करके पैसा कमाता.


शायद अपना धंधा और बड़ा करना चाहता था वो.लेकिन ना जाने क्यों उसके माँ बाप को ना गुजवार लगा उसका ये सपना.वो अब तक खुद नही जानता कि क्यों उसके अब्बू ने रातों रात उसे घर से बेदखल कर दिया,आज अगर जिंदा होते तो ज़रूर पूछता.लेकिन वो सोच चुका था,निर्णय ले चुका था अपने उस लक्ष्य को पाने का.
बचपन की उम्र में जहाँ सभी खेला करते है वहीँ वो पैसा कमाने में लग चुका था अब.


रात को थक हार के बिस्तर पर आता "माफ़ कीजियेगा जनाब लेकिन उसने कभी हारना तो सीखा ही नही था"तो थक के बिस्तर पर आता लेकिन चैन नही मिल पाता था.कोई तो होता जो उसे ये बता देता की कहाँ खो गयी है उसकी नींद,कहाँ खो गया है उसका चैन?ऐसे में अगर कोई उसका साथ देते तो वो थे उसके चंद दोस्त.अब यही दोस्त इसके अम्मी थे,अब्बा थे,भाई थे.अब यही थे जिनके साथ ये अपना सुख दुःख बांटा करता था.सभी लगभग हम उम्र थे.सबका खून गर्म था.सभी इसकी देखा देखी कुछ बड़ा करने की सोचने लगे थे.एक दिन सोच लिया इसने इस सपने को हकीकत में बदलने का.


सिद्दीकी दुबई जाना चाहता था.




लेकिन इतना पैसा नही था की हवाई यात्रा करके वहां की ज़मीन पर पैर रख सके.लेकिन जाना तो था ही. ऐसे,नही तो वैसे,लेकिन जाना था बस.


यकीन करना मुश्किल होगा लेकिन यही सच है कि कोलकाता से दुबई का सफ़र कभी ट्रेन में तो कभी रातों रात पैदल चल के पूरा किया गया.क्या नही किया गया मंजिल तक पहुँचने के लिए?दिन रात पैदल चला गया.4-4 दिन तक सिर्फ पानी पीकर ही गुज़ारा किया गया.अब भी लक्ष्य एक ही था और वो था कुछ बन दिखाने का......


क्या चल रहा होगा इसके मन में?कैसी प्रतिक्रिया रही होगी इसके ज़हन में,जब इसे इस बात की भी सुध नही थी की हमें कहाँ ले जाया जा रहा है? या हम वहीँ जा रहे है जहाँ जाना चाहते है? 


नहीं,इसे कुछ नही पता था.ये तो बस चले जा रहा था.लगातार चलता ही जा रहा था.थक चुका था.रुकना चाहता था.थोडा आराम करना चाहता था.शायद ये सोच के नही रुका की अगर रुका तो ज़िन्दगी में ही रुक जाऊंगा.

क्या इसे ज़रा भी डर नही लगा होगा पकडे जाने का?क्या ज़रा भी नही सोचा होगा इसने कि मेरा मज़हब क्या है?मैं किस मज़हब का हूँ और क्या कर रहा हूँ ये,वो भी ये जानते हुए कि इस मज़हब के लोगों को वैसे ही एक तो आतंकवादी के रूप में देखा जाता है?क्या ये इस बात से अनजान था कि अभी हाल ही में भारत-पाक युद्ध हुआ है? क्या ये इस बात से भी अनजान था कि बर्बादी के ज़ख्म अब तक हरे भरे ही है?


ऐसे संवेदनशील माहोल में जब कोई अपने घर से निकलने से पहले भी 100 बार सोचता है,वहीँ ये निकल पड़ा इतना लम्बा और कांटो से भरा अनिश्चित सफ़र पूरा करने के लिए?


कुछ भी हो लेकिन सभी बातों का जवाब सिर्फ एक ही था और वो था इसका जुनून.वादा किया था इसने अपने आप से कुछ बड़ा काम करने का.बड़ा आदमी बनने का.25 साल तक दुबई जैसी जगह पर रहा,अच्छा पैसा कमाया.खुद की कपड़ो की फैक्ट्री चलाई.......


लेकिन आज ये पूना में है और चाय की दुकान चला रहा है.


अपने माँ बाप का साथ खो देने के बाद इसने जिन दोस्तों को अपना सब कुछ माना उन्होंने ही इसके साथ धोखा किया. इसे ऐसी चोट दी कि ये फिर खड़ा न हो पाए.लेकिन हार इसने आज भी नही मानी है.आज इसका खुद का परिवार है.पत्नी है,दो छोटे छोटे से बच्चे है.आज ये उनका पेट पाल रहा है अपना परिवार चला रहा है.


उपर वाले से यही प्राथना है मेरी की ये सही सलामत रहे,अपने परिवार को हर वो ख़ुशी दे जो ये देना चाहता है.
दाद देता हूँ मैं इसके इस बेखौफ जुनून को.आप को भी अगर पसंद आया हो तो आप भी दीजियेगा.


वार्तलाप से हटा तो देखा मेरी चाय भी खत्म हो चुकी थी अब तक.ये सब सुनते सुनते कब 4-4 चाय पी गया पता ही नही चला. अपने पर ध्यान दिया तो पाया कि अब तक इस वार्तालाप में चार आँखें भीग चुकी है,एक बताने वाले की और एक सुनने वाले की.


जनाब अगर आप भी इस वार्तालाप में दिल से शामिल हुए थे तो एक बार अपना हाल भी जान लें,उम्मीद करता हूँ आपकी ये आँखें भी भीग चुकी होंगी अब तक.


दिल से गौर फरमाइयेगा इस आप बीती पर,तो यकीन मानिये एक नही लाखों आँखें भीगेंगी.......



दिल से धन्यवाद.......
                                                                                                                                             
                                                                                                                                        मोहक शर्मा.............

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