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Friday, September 9, 2011

मेरा पेंट ब्रश..द रास्कल...!!! (कुछ गिने चुने अंश)..!!


मेरा पेंट ब्रश...!!! ((कभी क्या तो कभी क्या...))....!!!
जाने मुझे क्या पाना हैसोचूं क्या है मेरी मंजिलछूने है तारे मुझेचाहिए सब मुझे......!!! अपने आप से लगाई ये उम्मीदे एक आकृति बनाने लगती है ज़ेहन में...!!
एक आकृति जो कहती है मुझसे इस संगीत के बारे मेंबहुत कुछ कह जाती है..खुद-ब-खुद चित्र बन रहे हैउठा लो इसको,हाथ में क्यों है ये..हुंह आकृतिये टेड़ी मेढ़ी सी गोल सी लम्बी सी चितकबरा बनाने लगी है.....और अंदर और गहरी और बड़ीये क्या होता जा रहा है,आकार ले लिया इसनेसपने लिए चली समुन्द्र में..टूटे आंसू छलकने लगे हैजिंदगी की अनचाही राहक्या पाना है इसे....वो टूटा तारा आ गया इस कागज परये खेत जो अभी समुन्द्र में था इस रुत से मेल करने की कोशिश में है....!!!! मेरा पेंट ब्रश...!!! 
धीमी तेज़ गतिएक कश के साथ चल रही हैलंबा कशइतना लम्बा कश कि दम निकलने को हैजिंदगी के गम निकलने को हैशायद मेरा पेंट ब्रश इसे लेकर आया है..ये छल्ले टूट रहे हैएकाएक फिर बन गएएक और आकृति धुंवा धुंवा होती हुई………..
वो हल्की शाम कुछ ठंडे झोंके नशा छाने लगा था,भीनी भीनी सी वो महक जैसे कहीं कुछ सुलग रहा होशाम रात में तब्दील होने को थीमेरा जाम भर चुका था...अब तक तो जाम की ये कशिश सुबह को शाम करती थी आज तो इसकी जुल्फों ने रात भी कर दीएक कमी जो खल रही थी पास वो नही था..होश बेखबर हो रहे थे पर मेरा पेंट ब्रश महफ़िल में अपनी मोजूदगी दिखा गया...मैंये जाम और ये पेंट ब्रश..हुंह रास्कल...!!!!

पानी से निकला ये मटमैला कागजसिर्फ बकवास ही बकवासमेरी जिन बातों के कोई माएने नही...कभी आस्मां तो कभी समन्दर में वो सूखा खेत..कभी तारे तो कभी मंजिलकभी टूटे आंसू तो कभी जिंदगी की ये अनचाही राहकभी जाम तो कभी मयखाने की वो रातसिर्फ और सिर्फ कोरी बकवास....

Friday, August 26, 2011

हमें यूँ ना सताओ....!!!


आम आदमी को खूब चूसा गया ये चुप रहा, खूब माल खाया गया इसका ये चुप रहा, इसे मारा गया इसे घसीटा गया, बेवजह इसको हर बात पर, हर मुद्दे पर निशाना बनाया गया ये फिर भी चुप रहा और ऐसा नही है कि चुप रहने, खामोश रहने का ये सिलसिला कोई नया हो,लम्बे अरसे से चला आ रहा है ये सबकुछ ,साठ साल से ज्यादा हो गए अत्याचार सहते सहते हमें लेकिन इसका अंत हमें अब तक नही मिला

कमाते हम है महेनत हम करते है, खाता कोई और है, हम बन्दर है जो नाच दिखाते है और मदारी ये नेता लोग है जो हमें कब से दबाए जा रहे है नचाये जा रहे है, हम बहुत भोले है, क्या कुछ नही सहा हमने और क्या कुछ नही किया इन्होने

हमें मार मार के अधमरा कर छोड़ा हम फिर भी चुप रहे, हमारा सारा पैसा ये खा गए, हम फिर भी महेनत करते रहे इस उम्मीद के साथ कि कभी ना कभी तो इनका पेट भरेगा,यहाँ हम मर जाते है काम करते करते लेकिन इनका पेट नही भरता,

छोडिये जनाब कई बातें है कई शिकायतें है क्या क्या बयाँ करें अरे कब से मरते आ रहे है हम, कब से हम इनके साथ एडजेस्ट ही कर रहे है, कब से इन्हें खिला रहे है,खुद भूखे रह कर इनका पेट भर रहे है, अपने बच्चे का पेट काटकर इन्हें देते है, अरे हमारी कोई मांग नही है बस एक चीज़ मांगते है ये भ्रष्टाचार कम कर दो अब हमें भी थोडा जीने दो, बहुत जी लिए हम यूँ मर मर कर, अब हमें भी हमारी कमाई का कमाया एक दाना खाने दो, कुछ रहम कर दो, भगवान के लिए बंद कर दो ये काली राजनीती, बंद कर दो ये गन्दा सियासी खेल

वहाँ 74 साल का बूढा बैठा है, कब से कुछ नही खाया है उसने, उसकी एक बात तो मान लो हमारी मत मानो,उस बुजुर्ग का तो ख्याल करो उसकी उम्र का तो लिहाज़ करो, क्यों हमें, उन्हें यूँ सता रहे हो, क्यों हमें ये सोचने पे मजबूर कर रहे हो कि हमने तुम्हे चुन कर गलती की

क्यों हमारी ख़ामोशी का इस कदर इम्तिहान ले रहे हो, क्या बिगाड़ा है हमने तुम्हारा, तुमने जो माँगा वो हमने दिया, अपना पैसा, अपना वक्त, अपना घर, अपनी ज़मीं, अपनी जान सब कुछ तो तुम्हे दे दिया ये जिंदगी तुम पर कुर्बान कर दी अब क्या चाहते हो

हमें और मत मारो, हमें और मत सताओ, हमारी ख़ामोशी को यू मत परखो, हमारा मजाक यू मत उड़ाओ, हाथ जोड़कर विनती कर तुमसे कह रहे है जीने दो जीने दो जीने दो जीने दो, हम नही चाहते कि हमारा गुस्सा फूटे, इस चिंगारी को और मत भड़काओ इसे यूँही पड़े रहने दो, मत सुलगाओ, ये सुलग गयी फट गयी तो कुते की मौत मारे जाओगे, सड़क पर नंगा करके तुम्हे मारा जायेगा, क्यों खुद अपने लिए कब्र खोद रहे हो, ये आम आदमी शांत बैठा है इसे मत जगाओ

हमें मत सताओ मत सताओ मत सताओ, हमें मजबूर मत करो, एक मांग है मान लो फिर कभी कुछ नही मांगेंगे. इतना कुछ किया तुम्हारे लिए, बस ये काम कर दो हमारे लिये, तुम्हारा ये एहसान मरते दम तक नही भुलंगे, हमें मत यूँ परेशां करो हमारी ख़ामोशी को हमारी कमजोरी मत समझो, यकीं करों ये सब कुछ जो हम समझा रहे है इसमें भी तुम्हारी ही भलाई है, पता है ना अगर तुम्हे हमारे दिल में पड़ी ये चिंगारी अगर सुलग गयी तो एक सेलाब आ जायेगा और सबसे पहले तुम नीच लोगों को, भ्रष्ट लोगों को मिटाएगा, क्यों अपनी मौत को बुलावा देते हो भावी नेताओ,सुधर जाओ सुधर जाओ सुधर जाओ

हमें यूँ ना सताओ यूँ ना सताओ यूँ ना सताओ.........!!!!!!


दिल से धन्यवाद, 
मोहक शर्मा 

Sunday, May 15, 2011

ये जो लोग है ये पहले ऐसे ना थे......!!!


ये जो लोग है ये पहले ऐसे ना थे, परेशां थके हुए हारे हुए, प्रकति से रूठे हुए, अपनों से नाराज़, अपनी धुन में खोये हुए, समाज से कटे हुए, दूसरों से बेवजह इर्ष्या करने वाले, ये जो लोग है ये पहले ऐसे ना थे.......


खाली जिन्दगी, नीरस जिंदगी बिताने वाले, खुशियों से दूर भागने वाले, चिंताओं को गले लगाने वाले, ये जो लोग है ये पहले ऐसे ना थे........


भगवान को ना पहचानने वाले, भगवान को गाली देने वाले ,पैसे को भगवान मानने वाले ये जो लोग है ये पहले ऐसे ना थे

तो पहले कैसे थे ये लोग.....? 
पहले लोग बहुत खुश थे, एक दूसरे से निस्वार्थ भाव से प्यार करते थे, प्यार की खुशबू फिज़ा में घुली हुई थी, खुशहाल जिन्दगी थी, सारे मौसम बड़े महरबान दोस्त थे सभी के, इंसानों के लिए सभी रस्ते दावत नामे थे, शाम को सब सितारे बहुत मुस्कुराते थे जब देखते थे इंसानों को, इनकी खुशियों को,इनकी एक जुटता को,इनके आपसी प्यार को.....!!!


फिर एकाएक अचानक एक आंधी आई, एक भूचाल आया, आंधी एक ऐसी आंधी जो बिल्कुल शांत थी, भूचाल एक ऐसा भूचाल जो दबे पैर आया, किसी का कुछ नही बिगाड़ने वाला ये भूचाल था, किसी की भी आँखों में मिट्टी ना डालने वाली ये आंधी थी


ये आये और चले गए, लोग हैरान थे भोच्क्के थे, मन में एक सवाल लिए कि इस बार इन्होने हमारा कुछ बिगाड़ा क्यों नही,एकाएक लोग खुश हुए, देखा कि ये हमारे लिए कुछ छोड़ गए है, हर बार ये आते थे कुछ ना कुछ लेकर जाते थे पर आज ये कुछ देकर गए हमें.....


लोगों ने खुशी खुशी पेड के नीचे पड़ी इस पुडिया को खोला तो पाया कुछ अलग था ये तोहफा, गोल गोल चमकदार था ये.....


लोग खुशी से झूमे नाचे गाये लोगों को इसे देखकर खुशी हो रही थी, पर जिनके हाथ ये ना आया था उन्हें अपने भाइयों से ही इर्ष्या होने लगी, उन्होंने भी ठान ली इसको पा लेने की, लोग महनत करने लगे इसे कमाने के
लिए......(जो सिलसिला आज भी चल रहा है)


दरअसल वो भी क्या समय था जब इंसां को इस फफूंद के बारे में पता ही नही था. सब कितना खुश थे, कोई
भेदभाव ना था कोई बैर ना था, जो लाते उसको बराबर बराबर करके बंटवारा करते थे, कोई चिंता नही थी.....


खाओ पीयो ऐश करो की जिंदगी थी...


समय का चक्र घूमा,बदला ये ज़माना.फिर आये नए लोग इस मतलबी दुनिया में, इनका भगवान था ये पैसा, इनके माँ बाप था ये पैसा, इनका रिश्तेदार था ये पैसा, जैसे जैसे बड़े होते गए पैसा कमाने की होड में खुद को भूलते गए....


आज जो हालत है सबके सामने है, ये पैसा सबका सब कुछ बिगाड़ता है सब कुछ छीन लेता है, ना जाने कितनो
से दुश्मनी करवाता है.....


ये बात जानते हुए कि पैसा किसी के बाप का सगा नही, हम इसका सगा बनने की कोशिश करते है और हर बार मुह की खाते है, बड़ी चालाक चीज़ है ये पैसा, मंझा हुआ खिलाड़ी है ये पैसा, कितनो को लड़वाता है कितनो को मरवाता है कितनो को बर्बाद करता है लेकिन फिर भी ये आज तक किसी का दुश्मन नही बना, आज भी भगवान बने बैठा है....


भगवान एक ऐसा भगवान जो किसी का नही है जो कभी किसी तो कभी किसी जेब में पड़ा मिलता है, जिसके पेंदे का कोई लौटा नही,कभी इधर लुडकता है तो कभी उधर..


कभी यहाँ  खुशिया लेकर आता है तो कभी वहाँ बर्बादी लेकर आता है


पैसे ने अपना काम कर दिया, लोगों को दुश्मन बना दिया, खुशिया छीन ली, परेशां कर दिया, थका दिया हरा दिया इसने, प्रकति से रुठ गया इंसान इसकी वजह से, समाज से कटवा दिया इसने सब को, पर भी आज भी ये लोगों के दिल पर राज करता है, भगवान बना बैठा है आज ये ढोंगी भगवान


ये मेरे बाप सगा है ना तेरे बाप का, ये जानते हुए भी आज हम इसके पीछे भाग रहे है, दौड़ रहे है, इंसान का बचपन ये खा गया, जवानी ये चाट गया, बुढापे में आने से पहले इसने अधमरा कर छोड़ा  और बुढापे में आते आते जो दीया ही बुझा दिया....


अब सोचता हूँ मैं......
क्यों आई थी कभी किसी वक्त वो आंधी, क्यों आया था वो भूचाल, क्यों हमें ये दे गए मीठा ज़हर, क्यों दिया हमें ऐसा जहर जो तिल तिल के ना जाने कितनो को निगल गया, क्यों दिया हमें ऐसा ज़ेहर जो रिश्ते खा गया, जो हमसे हमारों को छीन ले गया.....


काश वो आंधी और तूफ़ान हर बार की तरह सभी कुछ उजाड कर चले जाते, काश वो उन सभी इंसानों को अपने साथ ले जाते, तो वो पेड़ के नीचे पड़ी पुडिया ही नही खुल पाती या काश फिर एक आंधी आती और उस पुडिया को ही उड़ा ले जाती.....काश...काश...काश....!!!


काश...काश..तो ये लोग है अभी, ये ऐसे ना होते......!!!!



दिल से धन्यवाद,
मोहक शर्मा....

Sunday, March 13, 2011

जिंदगी न्यूज़ एंकर की....!!!

नमस्कार आप देख रहे है डी.डी. न्यूज़, आज की ताज़ा खबरे.......पंद्रह मिनिट तक खबरे चली और बंद हो गयी...एंकर शुरू से लेकर आखिर तक जैसे कुर्सी पर था वैसे ही रहा ना हिला ना डुला...जैसे कि फेविकोल का जोड़....

बैठ कर बोलना होता था.....खबरें चाहे ख़ुशी की हो या दुःख की...गंभीरता भरी हो या व्यंग करती....एंकर के चेहरे पर ना हसी होती थी ना मुस्कुराहट ना गंभीरता....

ये सब छोड़ो अगर गर्दन भी इधर से उधर हो जाए तो बवाल हो जाता था और एंकर साहब की नौकरी खतरे में....तो ये था एंकर कल तक.....

नमस्कारआप के साथ मैं हूँ मोहक शर्मा और आप देख रहे है स्टार न्यूज़..अब तक की सबसे बड़ी खबर दिल्ली से आ रही है जी हाँ क्या हुआ है दिल्ली में....चलिए लिए चलते है आपको खबर की ओर,
आपको बता दे कि आज सुबह तडके पांच बजे हुई है चोरी...जी हाँ पच्चीस लाख रूपये की वारदात को अंजाम दिया गया है, पश्चिमी दिल्ली का इलाका है जहाँ एक बार फिर चोरों के होंसले बुलन्द दिखाई दिए है....वगैरह वगैरह.......!!!!

फर्क महसूस किया आपने? ये तो मैं आपको लिख कर महसूस करने को कह रहा हूँ...असली मज़ा तो तब है जब आप एंकर को टीवी पर देखते होंगे....एक अलग ही आत्विश्वास नज़र आता है आज के एंकर में....क्या अदा के साथ क्या स्टाइल के साथ कैसे मोहक तरीके से कहता है अपनी बात...विश्वास ना हो तो मियूट करके देख लीजियेगा कभी....आज के इस एंकर के हाव भाव से ही पता चला जायेगा कि कोई दुःख कि खबर सुनाई जा रही है या खुशी की....
हर खबर पर चेहरे के हाव भाव क्या आसानी से बदले जाते है....तो ये है आज का एंकर और वो जो पहले ज़िक्र किया था मैंने वो था कल का एंकर....


चलिए ये तो एंकर की बात, बात करते है न्यूज़ रीडर की...लोग मानते है कि न्यूज़रीडर और न्यूज़एंकर एक ही चिड़िया का नाम है, पर लोगों का क्या है, लोगों का तो काम ही कहना है,


पर मेरा ख्याल है कि ऐसा बिलकुल नही है, सरासर गलत सोच है ये लोगों की, एक न्यूज़एंकर और एक न्यूज़रीडर में बहुत बड़ा फर्क है....!!!


सही मायनों में न्यूज़एंकर वो है जो पांच लाइन के साथ ही आधे घंटे खेलना जानता हो, न्यूज़एंकर वो है जिसे पता है कि अब उसे आगे क्या कहना है,अगर टीपी अटक गयी है या किसी टेक्निकल कारण से कुछ दिक्कत आ गयी है तो न्यूज़एंकर की यही खासियत है कि उसे चुप नही होना है लगातार कुछ ना कुछ बोलते रहना है, लोगों को बाँध कर रखना है, न्यूज़एंकर वो है जिसको कैमरे का डर ना हो,जिसकी कैमरे से अच्छी दोस्ती हो, 


अगर आप टीवी देख रहे है और कहीं कोई अटक जाता है चुप पड़ जाता है न्यूज़ बोलते बोलते तो समझ जाइयेगा वो न्यूज़रीडर है अभी उसे बहुत वक्त लगने वाला है न्यूज़एंकर बनने में...!!!


सौ बातों की एक बात "लास्ट एडिटर न्यूज़एंकर ही होता है" सहमत है आप ? 
यार सीधी बात है अगर कहीं पीछे से गलती हुई है, कभी कहीं कुछ और दिखाने की जगह कुछ और चल गया है तो लोग यही कहेंगे कि "क्या बेवकूफ है ये,पढ़ क्या रहा है दिखा क्या रहा है",कहेंगे ना?


जबकि देखा जाए तो इसमे गलती न्यूज़एंकर की नही है, कंट्रोल यूनिट की है, पर लोग ये नही समझते है, और इसमे लोगों की गलती भी नही है, लोगों को सिर्फ अच्छे रिजल्ट से मतलब है,
उन्हें कोई मतलब नही है कि गलती कहाँ हुई किससे हुई क्यों हुई कब हुई, एक गलती हुई नही कि चैनल चेंज,
ये टीवी का रिमोट बहुत बड़ी ताकत है आम आदमी की,एक गलती हुई नही कि हो गया नाराज़

साफ़ है जैसा कि मैंने पहले कहा कि "लास्ट एडिटर न्यूज़एंकर ही होता है" शायद अब आप समझ गए होंगे....!!!


लोग मानते है कि न्यूज़एंकर होना बहुत अच्छी बात है, बड़ी बात है, क्या किस्मत होती है उनकी जो न्यूज़एंकर होते है, रोज टीवी पर आते है, कितना मज़ा आता होगा ना..वगैरह..वगैरह....!!!
(यहाँ शुरू से लेकर अब तक मैं "न्यूज़एंकर" शब्द ही इस्तेमाल कर रहा हूँ क्योंकि सही माएने में यही शब्द ही हमारी इस नोकरी की शान बढ़ाता है, मेरी नज़र में "न्यूज़रीडर" की कोई ओकात नही, ऐसा मैं क्यों बोल रहा हूँ ये आप समझ गए होंगे जिसको लेकर मैंने अभी ऊपर अपने विचार रखे थे)
पर ऐसा बिलकुल नही है, हाँ टीवी पर आना किसे पसंद नही है, पर यहाँ बात टीवी पर आने की नही है, ये एक जिम्मेदारी है, बहुत बड़ी जिम्मेदारी, एक ऐसी जिम्मेदारी जिसे आपको बाखूबी निभाना आना चाहिए


यार आपको लोग सुन रहे है, आज आप जिस मुद्दे पर अगले आधे घंटे तक बहस करने वाले हो,आपकी उन बातों पर ध्यान दिए जाने वाला है, आप जो कहेंगे वही लोग मानेंगे, तो अगर मैं मेरी बात करूँ तो मैं इस जिम्मेदारी को एक जिम्मेदारी की ही तरह लेता हूँ, इस काम को काम की तरह ही लेता हूँ


किसी भी मुद्दे पर बात शुरू करने से पहले दिल में ये नही होता कि तू ऑनएयर होने वाला है, दिल में ये होता है कि जो भी कहना है डंके की चोट पर कहना है, तथ्य के साथ कहना है, बेबाक कहना है दो टूक कहना है, और सबसे बड़ी बात जो है वो ये कि ये मेरा काम है मुझे इसे काम की ही तरह करना है, टीवी पर आने की खुशी में उतावला कतई नही होना है


ख़ैर ये तो हुई अपने काम की बात, पर निजी जिंदगी की अगर बात करूँ तो सचमुच बहुत अच्छा लगता है जब अनजाने लोग आपको पहचानने लगते है और कभी कहीं कोई आपसे आकर कहने लगता है कि "यार शायद आपको टीवी पर देखा है" ज़ाहिर सी बात है अच्छा लगता है, खुशी होती है 
एक अलग ही एनर्जी मिलती है


To Be Continued......!!!!

Sunday, November 14, 2010

वो आज में जीते है.....

वो आज में जीते है 

कल को भूलते है और 

कल को याद रखते है 

इस कल के लिए ना जाने कितने आज गुज़ार देते है 

पर ये नही समझ पाते कि जो आज है 

वो कल नही और जो कल है वो परसों नही 

पर बात ये है कि जो कल था वो आज है 

और वही आज, कल है 

वही कल परसों भी होगा

लेकिन वो परसों कभी कल नही होगा 

लेकिन वो फिर कल होगा....

ये आज और कल का खेल है 


परसों भी एक खिलाड़ी है 

लेकिन ये तीन खिलाड़ी आपस में जुड़े है 

क्योंकि जब कल था तो वो आज हुआ 

फिर यही आज कल हो जायेगा 

और ये कल परसों 

लेकिन कल तो आज से पहले था

फिर ये कल परसों कैसे हुआ ?

और अगर परसों को भी कभी आज होना है 

तो ये परसों कल कैसे हुआ?

तीनो खिलाड़ी कम नही है 

तीनो को महारथ हासिल है 

इस आज कल और परसों में ही 

ना जाने कितने आये और चले गए 

अब भी जा रहे है 

कल भी जा रहे थे 

आज भी जा रहे है 

कल भी जायेंगे 

और परसों भी जायेंगे 

इन तीन खिलाड़ियों की बात सो समझ गया 

वो जी गया....

लेकिन जो नही समझा वो भी जी गया...

इस आज से दोस्ती कर लो 

कल से डरो

और आज से पहले वाले कल को मत देखो 

क्योंकि ये आज से पहले वाला कल सबसे घातक है 

इस कल ने ना जाने किस किस को आज में मार डाला

इस कल ने आज तो जीने नही दिया 

बल्कि आज के बाद आने वाला कल भी देखने नही दिया 

परसों की तो छोडिये जनाब....

इसलिए कहता हूँ आज से पहले वाले कल को कभी मत देखो 

आज के बाद वाले कल पर नज़र रखो

उस कल को संवारो 

क्योंकि उस कल के बाद परसों तुम्हारा इंतज़ार कर रहा है

अगर परसों से पहले वाला कल यानी आज के बाद वाला कल 

संवर गया तो तुम तुम्हारे कल को संवार दोगे 

ये वही कल है जो कभी आज से पहले था 

लेकिन अब ये आज के बाद वाला कल है 

और परसों से पहले वाला कल भी यही है 

यानि इस कल पर सब कुछ निर्भर करता है 

आज कल और परसों की इस कश्मकश में 

आज को मत जाने दो 

और कल का इंतज़ार करो 

क्योंकि इस कल के बाद परसों आना है 

आज कल फिर परसों

फिर परसों बन जायेगा आज से पहले वाला कल 

इस कल से प्यार करो लेकिन इससे सावधान रहना

कभी भी वार कर देगा ये कल

आज से कभी धोखा मत करना क्योंकि 

आज है तो कल है 

और ये कल था तो आज है 

परसों की परसों देखना कि कौन क्या था क्योंकि उस दिन परसों आज होगा तुम्हारा.......




गहरी बात है इन तीन खिलाड़ियों को अपनी जिंदगी में उतार लो इन्हे अपना दोस्त बना लो लेकिन इनसे दोस्ती मत करना चाहो तो इनको अपना दुश्मन बना लो लेकिन इनसे दुश्मनी मत करना......


दिल से धन्यवाद,

मोहक शर्मा......

Wednesday, October 27, 2010

इन्हे आज़ाद कश्मीर चाहिए............

कश्मीर पर कोई कुछ बोला...एक मिनिट के लिए ये भूल जाईये.....और एक दिन पीछे आ जाईये.....और अब बताइए कश्मीर पर ऐसी विवादास्पद टिप्पणी देने से पहले कितने लोग जानते थे इन महान अरुन्धिता रॉय को?

मुश्किल से 10 %...

अब  वापस आ जाइये....अब बताइए ? अब कितने लोग जानते है इस महान लेखिका के बारे में?? अब तो सब जान गए होंगे.....
वैसे मीडिया का आजकल खूब फायदा उठाया जा रहा है देखा जाए तो.....
क्यों क्या कहते है आप?
इसका ताज़ा उदाहरण है मिस अरुन्धिता रॉय....
मुझे नही पता की क्या चल रहा है इनके मन में ? क्या ये सच-मुच कश्मीर और कश्मीर में रह रहे लोगो के बारे में इतना सोचती है या फिर चर्चाओ में बने रहने का ही एक मात्र उदेश्य है इनका....
जो भी हो ये तो ये ही जानती है...



कहने का मतलब ये कि आप कुछ बोलते हो तो बोलने से पहले सोच भी लेना चाहिए कि आप दो लोगो के बीच बैठकर बात नही कर रहे

आप आम आदमी के मंच पर बैठे हुए हो और सभी लोग आपको बात सुन रहे है...अपने आप को इतनी बड़ी लेखिका बताती हो और ऐसा बचपना करती हो? 
कश्मीर को भारत से अलग करने की बात करती हो? कहती हो कि कश्मीर को आज़ाद कर देना चाहिए? भूल गयी तुम कि भारत ने कश्मीर को बचाए रखने के लिए क्या क्या कुर्बानियां दी है..कितने जवानों को शहीद होना पड़ा...आज तक उन जवानों के घर गयी कभी तुम? उस माँ के पास गयी जो आज भी ये आस लगाये बेठी है कि उनका बच्चा वापस आएगा लौट के कभी....??

उस विधवा पत्नी का हाल जानने कि कोशिश भी की जो आज तक इंतज़ार करती है अपने पति के आने का ? मुझे तो शर्म आती है आपको लेखिका का दर्जा देते हुए भी....कहो जवानों के घर गयी तुम कभी?जाना कभी उस माँ का हाल और विधवा औरत का हाल?

लेखिका हो तो वैसा कुछ काम भी तो करो...लोगो को जोड़ने की बात करने की बजाए लोगो को तुडवा रही हो?
ये जानते हुए कि वहाँ कब से दिक्कते चली आ रही है...कब से दंगे फसाद चले आ रहे है? कितना संवेदनशील इलाका है वो.......

आप कहते हो कि "मैंने कश्मीरी लोगों के लिए इंसाफ के बारे में कहा है, जो दुनिया के सबसे क्रूर फौजी कब्‍जे में रह रहे हैं.."

पहली बात तो आप जान लो कि जिन फौजियों की आप बात कर रही हो वो क्रूर नही बल्कि देशभक्त है...हमारे देश की सेना को ही तुम ठीक नाम नही दे सकी तो कश्मीरियों के बारे में क्या ख़ाक सोचोगी? बड़ी चिंता है तुम्हे इन्साफ की तो पहले कहाँ थी तुम ? अचानक इतना प्रेम कैसे उमड़ रहा है? कुछ नही है साहब अपने आप को चर्चाओ में रखने की आदत है इन्हे...ये सब बकवासबाजी है...

कम से कम लोग किसी हद्द तक तो रह रहे है चेन अमन से...वो चेन अमन भी छीनना चाहती है आप ?

आप कहती हो कि "मैं कल शोपियां गयी थी – दक्षिणी कश्मीर के सेबों के उस शहर में, जो पिछले साल 47 दिनों तक आसिया और नीलोफर के बर्बर बलात्कार और हत्या के विरोध में बंद रहा था। इन दोनों युवतियों की लाशें उनके घरों के पास की एक पतली सी धारा में पायी गयी थी और उनके हत्यारे अब भी कानून से बाहर हैं"

लेखिका जी किसी के बारे में चिंता करना अच्छी बात है और मुझे सच में अच्छा लगा कि आप इतना कुछ सोचती हो लोगों के लिए...
पर ये तो आपको भी पता होगा कि ऐसा सिर्फ कश्मीर में ही नही भारत के कोने कोने में होता आया है......तो क्यों नही आप अपने लेखिका होने का कर्तव्य निभाएं और उन तमाम लोगों के बारे में लिखना शुरू करे जिनके साथ ऐसी या इनसे भी बुरी घटनाएं हुई है...
आज तक किसी शहीद के घर तो जा नही सकी..चलो कोई बात नही..तो कम से कम इन तमाम लोगो के घर जाकर क्यों नही इनको भी इन्साफ दिलवाती हो?

है दम तो कल से ही शुरू कर दो अपना इन्साफ दिलवाने का ये अभियान? लेकिन आप ऐसा नही करोगी क्योंकि कथनी में और करनी में दिन रात का अंतर होता है....बोलना आसान है मैडम करना बहुत मुश्किल है......... 
चलो छोडो यार मैं तो कहता हूँ पूरे देश में सबको इन्साफ मत दिलवाओ, दिल्ली चले जाओ
दिल्ली में ही ना जाने कितने लोग है,ना जाने कितने गरीब और आम आदमी है जिनकी कोई परख कद्र नही है...वहाँ इन्साफ दिलवाओ सबको 
वहाँ जाकर भी ऐसे विवादास्पद बयान दे देंगी आप तो
तो क्या दिल्ली को भी आज़ाद कर देंना चाहिए तुम्हारी नज़र में..??

ऐसा कुछ तो काम करो कहीं तो इन्साफ दिलवाओ ? मैं क्या ये पूरी अवाम मानेगी कि आप सच में भारत के लिए इतना सोचती है...नही तो मान लीजियेगा कि आपका वो बयान सिर्फ और सिर्फ अपने आप को चर्चाओ में बने रहने के लिए दिया गया था......

तुम कहती हो ना कि "मुझे तरस आता है उस देश पर, जो लेखकों की आत्मा की आवाज को खामोश करता है। तरस आता है, उस देश पर जो इंसाफ की मांग करनेवालों को जेल भेजना चाहता है। "

अगर इतनी ही परेशानी है तो ठीक है ना क्यों नही छोड़ देती ये देश? ऐसा देश जहाँ तुम्हारी बात पर तुम्हे जेल भेजने की मांग की जाती है ? जाओ बहन जाओ नही चाहिए हमें ऐसी महान लेखिका जो देश को तोड़ने की बात करे...........

तुम्हारी ये बातें सुनकर ये बकवासबाज़ी सुनकर मैं एक ही नतीजे पर पहुँच पाया हूँ अब तक 
तुम उन गद्दारों मे से हो जो जिस थाली का खाते है उसी थाली में छेद करते है .....बंद करो अपनी ये चीप और सस्ती सोच के साथ पब्लिसिटी पाने की दुकान......आज़ादी मिली हुई है इसका मतलब ये नही कि कुछ भी आप बकवासबाजी करे.............



Monday, October 25, 2010

रोज मरता हूँ तिल तिल के मरता हूँ.........

बहुत ताकत है मुझ में

बहुत ताकतवर हूँ मैं 

मेरी ताकत देखेंगे

तो सुनो 

सुनाता हूँ अपनी ताकत को 

मैं हूँ तो ये दुनिया चल रही है

कौन कहता है कि भगवान चला रहा है दुनिया 

सुनी सुनाई बातें है साहब ये तो..

वापस कहता हूँ मैं हूँ तो दुनिया चल रही है 

मुझसे चलती है दुनिया

मैं नही तो दुनिया नही 

दुनिया का हर एक शख्स मेरी बदोलत जी रहा है 

ये मेरी अकड नही 

ये मेरा गरूर नही 

ये मेरा ज़रूरत से ज्यादा आत्मविश्वास नही

ये मेरी सच्चाई है

नही!मैं कोई भगवान नही हूँ

न ही किसी सांतवे आसमान से उतरा हूँ 

मैं यही जन्मा हूँ 

मैं यही बड़ा हुआ हूँ

यही खेला हूँ 

यही रोया हूँ 

लेकिन जैसे जैसे बड़ा होता गया 

मेरी ताकत मुझसे दूर होती गयी 

मुझमें डर पैदा होने लगा

इतना डरपोक हो गया मैं ?

धीरे धीरे कमजोर होता गया

अपनों ने ही डरना सिखाया

वो भी कभी ताकतवर रहे होंगे

शायद उन्हें भी किसी ने डरना सिखाया होगा

तभी तो ये परंपरा चलती आई

परंपरा!डरने और डराने की परंपरा

घुट घुट के जीने की परंपरा

लेकिन इतना कमजोर होने के बाद भी बहुत ताकत है मुझ में

आज भी अपनी पर आ जाऊ तो दुनिया हिला के रख दूँगा

लेकिन आज भी डरता हूँ इस ताकत को दिखाने में 

शायद आप अब तक नही समझे कि मैं कौन हूँ 

साहब मैं वो हूँ जो कभी ट्रेन में फंसता है

मैं वो हूँ जो कभी ट्रैफिक में फंसता है

मैं वो हूँ जो कभी बम ब्लास्ट में फंसता है

मैं वो हूँ जिसे हर बात के लिए दबाया जाता है

जनाब फेमस डाएलोग  है ये तो

अब तो समझ गए होंगे कि मैं कौन हूँ

मैं वो हूँ जो पल पल मरता है

तिल तिल के मरता है

हर दिन मरता है रोज मरता है 

कभी भीड़ में 

कभी बस में 

कभी ट्रेन में 

कभी किसी कतार में

कभी किसमें तो कभी किसमें

पेट्रोल डीज़ल के दाम बढते है 

फल-सब्जी के दाम बढते है

राशन पानी के दाम बढते है

और मरता मैं हूँ 

दबता मैं हूँ 

महंगाई नाम की बंदूक से निकली गोली 

जो ना जाने मुझे कहाँ कहाँ से तार तार करती है

मुझे घायल कर देती है 

अधमरा कर छोड़ती है 

रोजमर्रा के काम करता हूँ मैं 

डरता हूँ घर से बाहर निकलते हुए 

घर से मुझे फोन आते है 

हर दो घंटे में फोन आते है 

ये जानने के लिए कि मैं मरा तो नही

फिर दबा तो नही 

यही सच्चाई है 

फोन कर रहा वो शख्स इस बात से मतलब नही रखता कि 

मैं कैसा हूँ क्या कर रहा हूँ 

खान खाया कि नही 

वो ये सब कुछ नही जानना चाहता है 

वो सिर्फ ये जानने के लिए ही फोन करता है कि 

कहीं मैं मर तो नही गया 

कही फिर दब तो नही गया 

कही फिर से किसी ने मुझे अधमरा तो नही कर छोड़ा

सब कुछ जानता हूँ 

लेकिन फिर भी चुप हूँ 

खामोश हूँ

गुस्सा बहुत है अंदर 

लेकिन मैं चुप हूँ  बस चल रहा हूँ और चलते ही जा रहा हूँ 

क्योंकि मेरी भी मज़बूरी है साहब 

मुझे मेरा घर चलाना है 

परिवार को पालना है 

मेरी ताकत देखो सब कुछ जानते हुए मैं फिर भी जी रहा हूँ 

फिर भी खड़ा हूँ 

इस उम्मीद के साथ के एक दिन ये सब कुछ थमेगा

ज़ेहन में ये सवाल लिए मैं कौन हूँ

मैं कौन हूँ

मैं कौन हूँ

अपने आप से कहता हूँ 


मैं आम आदमी हूँ..........



दिल से धन्यवाद,

मोहक शर्मा...........