"जुग जुग जियो,परमात्मा तुम्हे खूब तररकी दे" कुछ सुने सुने से लगते है ये आशीर्वाद मुझे.......
बीती रात बीजी(दादीजी)आई मेरे सपने में.सोते हुए बात की मैंने अपनी बीजी से.पूछने लगा कि "कहाँ चले गये थे मुझे छोड़ कर? मैं आपकी राह देखता ही रहा और आप ना जाने कहाँ चले गये थे?अब आप आ गये हो प्लीज़ बीजी प्लीज़,अब मत जाना मुझे छोड़ कर....."
पर ना जाने क्यों वो मुझे सिर्फ देखती ही रहीं बस,मेरी किसी बात का जवाब नही दिया उन्होंने........
सुबह हुई तो बहुत खुश था मैं,उठते ही सोचा की सबको खुशखबरी दूँ कि बीजी लौट आई है...हाहा पर ये व्यंगात्मक हंसी मुझे समझा बैठी कि उठ जा,जाग जा,सपने से बाहर आजा अब......
सपने देखना अच्छी बात है लेकिन ऐसे सपने कभी सच नही होते जो बीत चुके है,जाने वाले कभी लौट के नही आते......
यही सब कुछ समझा रहा था मेरा मन मुझे,मेरा मन मुझे ही तस्सली दे रहा था.....
एका-एक ये चला गया 13 मई,2006 में.........
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मेरी बीजी,जो अब नही रही है..... |
सुबह से ही मेरा मन भारी-भारी सा था,शायद यही हाल था घर के दूसरे सदस्यों का भी, मुझे एक बात का डर सता रहा था कि कोई मुझे छोड़ के मुझसे बहुत दूर जाने वाला है आज........
बिस्तर पर लेटी हुई थी बीजी, सभी लोग उनसे बात करने की कोशिश कर रहे थे,लेकिन वो एक ही मुद्रा में बस आँखें बंद करके लेती हुई थी.मैं चाह रहा था कि बीजी कुछ बात करें.लेकिन शायद वो कुछ और ही चाह रही थी,शायद अब वो मुझे छोड़ कर जाना चाहतीं थी........
बीजी के आँख खुलने का इंतज़ार करते करते रात हो गयी थी.मैं अब भी ज्यों का त्यों बैठा था,अब भी इंतज़ार कर रहा था,लेकिन कोई फयदा नही था,क्योकिं शायद बीजी तो सोच चुकी थी,जाने का निर्णय ले चुकी थी.....
रात के 11 बज चुके थे,जिस तरह से दीया बुझने से पहले एक बार तेज़ी से रोशनी करता है,उसी तरह बीजी ने भी जाते जाते पांच दिनों से बंद पड़ी आँखें खोल सबको रोशनीयुक्त कर दिया.जाते जाते मुझे देखा, सभी को देखा...पिछले कई दिनों से घर वालो की एक इच्छा थी कि एक बार ही सही आँखें तो खोलें बीजी और जाते जाते भी सबकी ख्वाहिश पूरी कर गयी बीजी......
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मेरे पिताजी और बीजी...... |
बीजी जा चुकी थी अब मुझसे दूर,बहुत दूर,इतना दूर कि वापस लौटना नामुमकिन था अब......सब रो रहे थे...पिताजी,चाचाजी और ताऊजी और इनके सभी बेटे यानि कि हम सभी भाई तैयारियां करने में जुट चुके थे.......
लोगों के आने जाने का सिलसिला शुरू हो चुका था,रोने और चिल्लाने की आवाज़े दूर दूर तक पहुँच चुकी थी........
मैं भाइयों के साथ लोगो की बैठने की व्यवस्था करा रहा था,दरियाँ बिछवा रहा था मैं.काम हम सभी कर रहे थे लेकिन बार बार ये आंसू बाधा बन जाते थे....
रोकने की बहुत कोशिश कर रहा था इन आंसुओं को मैं,लेकिन नही रुक रहे थे.......
थोडा ध्यान हटा के मैंने पीछे की ओर देखा,बीजी को पिताजी और ताउजी बर्फ की सिल्लीयों पर लिटा रहे थे,दोनों की आँखों से आंसू बहकर उस बर्फ पर गिर रहे थे.लेकिन बर्फ को कुछ असर नही हो रहा था,वो तो ज्यों की त्यों थी,बस आंसू ही अपने आप को कमज़ोर महसूस कर रहे थे शायद.....
फिर मैंने बीजी का चेहरा देखा,अब भी कितना तेज था इस पर.ऐसा लग रहा था की बस अब उठेंगी और बोल पड़ेंगी मुझे "आ गया मेरा बच्चा....." लेकिन नहीं बोलीं बीजी,बस मैं इंतज़ार ही करता रह गया.....
जिस माँ ने इन्हे जन्म दिया,अपनी गोद में रख कर दुनिया दिखाई,आज वही अपनी माँ को गोदी में उठा कर बर्फ पर लिटा रहे थे,माँ जा चुकीं थी............
ये द्रश्य देख कर मैं नही रोक पाया अपने आप को,फूट फूट के रोया.दिल से एक तो पहले ही बीजी का चेहरा नही जा रहा था ऊपर से इस वाक्या ने तो तोड़ के रख दिया मुझे.....
रोकना चाह रहा था अपने आप को मैं लेकिन नही रोक पा रहा था.अपने आप को ही सांत्वना दे रहा था मैं.......
कुछ देर बाद पिताजी ने अपने आप को सम्भालते हुए मुझे भी सम्भाला और एक बात समझाई मुझे.....
कहने लगे कि "जब किसी डाल का पत्ता कमज़ोर हो जाता है तो वो सूख जाता है और कुछ समय बाद गिर जाता है,लेकिन क्या तूने कभी हरे पत्तों को सूखे पत्तों के साथ गिरता हुआ देखा है? यही दुनिया का नियम है,एक दिन मुझे भी जाना है और तुझे भी,सब जाते है एक दिन.समय सबका आता है फर्क सिर्फ इतना है कि किसी को जल्दी जाना पड़ता है और किसी को देर से, लेकिन जाना पड़ता है........"
मैं आँखें झुकाए खड़ा बस सुनते जा रहा था,एक कान में पिताजी की बातें सुनाई पड़ रही थी तो दूसरे कान में लगातार ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे बीजी बुला रही हो मुझे,जिस तरह से वो मुझे हमेशा प्यार से बुलाया करती थी.....
पिताजी समझाये जा रहे थे बस,"बहुत काम है अभी हम सब को,इस तरह से रोयेगा तो कैसे चलेगा काम?सम्भाल बेटा अपने आप को..."
चुप होने की कोशिश बहुत की लेकिन आंसू रुकने का नाम नही ले रहे थे...
अब तक रात के 3 बज चुके थे.भाइयों को पिताजी और ताउजी समेत अखबार वालों के ऑफिस जाना था दुःख की खबर छपवाने,सो वो चले गये....
मैं बैठा बीजी के पार्थिव शरीर के पास लगातार उन्हें देख रहा था,विश्वास नही हो पा रहा था अब तक कि बीजी मुझे छोड़ के चली गयी है..........
मेरे चाचा जो कि एक बहुत ही भावुक किस्म के इंसान है वो मेरे बगल में बैठे सुबकियाँ ले ले कर एक छोटे बच्चे की तरह रोये जा रहे थे,(बच्चे ही तो थे बीजी के,चाहे कितने भी बड़े हो जाएँ लेकिन माँ के लिए तो वो हमेशा बच्चा ही रहता है...)मैं उन्हें चुप करा रहा था......
बैठे बैठे कुछ देर के लिए वहीँ आँख लग गयी मेरी.....
उठा तो देखा 5 बज चुके थे,उनसे लिपट कर बुरी तरह रोने की बहुत ख्वाहिश थी मेरी.बस एक बार उनके गले लग कर रोना चाहता था मैं,पर ख्वाहिश,ख्वाहिश ही रह गयी.....
लोगो के आने जाने का कार्यक्रम करीब 8 बजे तक चला,कुछ ही देर बाद उनको अपने काँधे पर लिए शमशान ले जाया जाना था,आखिरकार वो समय भी आ गया......
हाथ में मटकी लिए आगे आगे चल रहा था मैं और पीछे पिताजी और ताउजी,चाचाजी और भईया लोग कंधा दे रहे थे बीजी को और भी बहुत लोग पीछे पीछे आ रहे थे.........
शमशान आ चुका था,बीजी पर भारी भारी लकड़ियाँ रख रहे थे लोग,पंडित पूजा की तैयारी कर रहे थे,बहुत बुरा द्रश्य था,बहुत रोया मैं........
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और देखते ही देखते चली गयी बीजी....... |
रुक ही नही रहे थे आंसू,समय आ गया था उनको मुखागिनी देने का,मन तो किया कि एक बार अपनी बीजी को गले लगा के जी भर कर रो लूँ,लेकिन नही कर पाया ऐसा.........
ताउजी ने मुखागिनी दे दी.......
जा चुकी थी बीजी,बड़ी बड़ी लपटें उठ रही थी लेकिन उनका पार्थिव शरीर वैसे ही पड़ा रहा,ख़त्म हो गया था सब...........
आज चार साल हो गये बीजी को गये,लेकिन आज भी बीजी आती है मेरे सपनों में,आज भी मेरे कानों में गूंजती है उनकी आवाजें, उनका वो प्यार से बुलाना, वो प्यार भरी डांट,सब सुनाई देता है मुझे.......
बहुत प्यार करता हूँ उनसे मैं............
रोज़ रात को सोते समय जब भगवान् को हाथ जोड़ता हूं,तब आज भी बीजी को याद ज़रूर करता हूँ.........
दिल से धन्यवाद.......
मोहक शर्मा.........