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Friday, September 9, 2011

मेरा पेंट ब्रश..द रास्कल...!!! (कुछ गिने चुने अंश)..!!


मेरा पेंट ब्रश...!!! ((कभी क्या तो कभी क्या...))....!!!
जाने मुझे क्या पाना हैसोचूं क्या है मेरी मंजिलछूने है तारे मुझेचाहिए सब मुझे......!!! अपने आप से लगाई ये उम्मीदे एक आकृति बनाने लगती है ज़ेहन में...!!
एक आकृति जो कहती है मुझसे इस संगीत के बारे मेंबहुत कुछ कह जाती है..खुद-ब-खुद चित्र बन रहे हैउठा लो इसको,हाथ में क्यों है ये..हुंह आकृतिये टेड़ी मेढ़ी सी गोल सी लम्बी सी चितकबरा बनाने लगी है.....और अंदर और गहरी और बड़ीये क्या होता जा रहा है,आकार ले लिया इसनेसपने लिए चली समुन्द्र में..टूटे आंसू छलकने लगे हैजिंदगी की अनचाही राहक्या पाना है इसे....वो टूटा तारा आ गया इस कागज परये खेत जो अभी समुन्द्र में था इस रुत से मेल करने की कोशिश में है....!!!! मेरा पेंट ब्रश...!!! 
धीमी तेज़ गतिएक कश के साथ चल रही हैलंबा कशइतना लम्बा कश कि दम निकलने को हैजिंदगी के गम निकलने को हैशायद मेरा पेंट ब्रश इसे लेकर आया है..ये छल्ले टूट रहे हैएकाएक फिर बन गएएक और आकृति धुंवा धुंवा होती हुई………..
वो हल्की शाम कुछ ठंडे झोंके नशा छाने लगा था,भीनी भीनी सी वो महक जैसे कहीं कुछ सुलग रहा होशाम रात में तब्दील होने को थीमेरा जाम भर चुका था...अब तक तो जाम की ये कशिश सुबह को शाम करती थी आज तो इसकी जुल्फों ने रात भी कर दीएक कमी जो खल रही थी पास वो नही था..होश बेखबर हो रहे थे पर मेरा पेंट ब्रश महफ़िल में अपनी मोजूदगी दिखा गया...मैंये जाम और ये पेंट ब्रश..हुंह रास्कल...!!!!

पानी से निकला ये मटमैला कागजसिर्फ बकवास ही बकवासमेरी जिन बातों के कोई माएने नही...कभी आस्मां तो कभी समन्दर में वो सूखा खेत..कभी तारे तो कभी मंजिलकभी टूटे आंसू तो कभी जिंदगी की ये अनचाही राहकभी जाम तो कभी मयखाने की वो रातसिर्फ और सिर्फ कोरी बकवास....