मेरा पेंट ब्रश...!!! ((कभी क्या तो कभी क्या...))....!!!
जाने मुझे क्या पाना है, सोचूं क्या है मेरी मंजिल, छूने है तारे मुझे, चाहिए सब मुझे......!!! अपने आप से लगाई ये उम्मीदे एक आकृति बनाने लगती है ज़ेहन में...!!
एक आकृति जो कहती है मुझसे इस संगीत के बारे में, बहुत कुछ कह जाती है..खुद-ब-खुद चित्र बन रहे है, उठा लो इसको,हाथ में क्यों है ये..हुंह आकृति, ये टेड़ी मेढ़ी सी गोल सी लम्बी सी चितकबरा बनाने लगी है.....और अंदर और गहरी और बड़ी, ये क्या होता जा रहा है,आकार ले लिया इसने, सपने लिए चली समुन्द्र में..टूटे आंसू छलकने लगे है, जिंदगी की अनचाही राह, क्या पाना है इसे....वो टूटा तारा आ गया इस कागज पर, ये खेत जो अभी समुन्द्र में था इस रुत से मेल करने की कोशिश में है....!!!! मेरा पेंट ब्रश...!!!
धीमी तेज़ गति, एक कश के साथ चल रही है, लंबा कश, इतना लम्बा कश कि दम निकलने को है, जिंदगी के गम निकलने को है, शायद मेरा पेंट ब्रश इसे लेकर आया है..ये छल्ले टूट रहे है, एकाएक फिर बन गए, एक और आकृति धुंवा धुंवा होती हुई………..
वो हल्की शाम कुछ ठंडे झोंके नशा छाने लगा था,भीनी भीनी सी वो महक जैसे कहीं कुछ सुलग रहा हो, शाम रात में तब्दील होने को थी, मेरा जाम भर चुका था...अब तक तो जाम की ये कशिश सुबह को शाम करती थी आज तो इसकी जुल्फों ने रात भी कर दी, एक कमी जो खल रही थी पास वो नही था..होश बेखबर हो रहे थे पर मेरा पेंट ब्रश महफ़िल में अपनी मोजूदगी दिखा गया...मैं, ये जाम और ये पेंट ब्रश..हुंह रास्कल...!!!!
पानी से निकला ये मटमैला कागज, सिर्फ बकवास ही बकवास, मेरी जिन बातों के कोई माएने नही...कभी आस्मां तो कभी समन्दर में वो सूखा खेत..कभी तारे तो कभी मंजिल, कभी टूटे आंसू तो कभी जिंदगी की ये अनचाही राह, कभी जाम तो कभी मयखाने की वो रात, सिर्फ और सिर्फ कोरी बकवास....