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Sunday, November 14, 2010

वो आज में जीते है.....

वो आज में जीते है 

कल को भूलते है और 

कल को याद रखते है 

इस कल के लिए ना जाने कितने आज गुज़ार देते है 

पर ये नही समझ पाते कि जो आज है 

वो कल नही और जो कल है वो परसों नही 

पर बात ये है कि जो कल था वो आज है 

और वही आज, कल है 

वही कल परसों भी होगा

लेकिन वो परसों कभी कल नही होगा 

लेकिन वो फिर कल होगा....

ये आज और कल का खेल है 


परसों भी एक खिलाड़ी है 

लेकिन ये तीन खिलाड़ी आपस में जुड़े है 

क्योंकि जब कल था तो वो आज हुआ 

फिर यही आज कल हो जायेगा 

और ये कल परसों 

लेकिन कल तो आज से पहले था

फिर ये कल परसों कैसे हुआ ?

और अगर परसों को भी कभी आज होना है 

तो ये परसों कल कैसे हुआ?

तीनो खिलाड़ी कम नही है 

तीनो को महारथ हासिल है 

इस आज कल और परसों में ही 

ना जाने कितने आये और चले गए 

अब भी जा रहे है 

कल भी जा रहे थे 

आज भी जा रहे है 

कल भी जायेंगे 

और परसों भी जायेंगे 

इन तीन खिलाड़ियों की बात सो समझ गया 

वो जी गया....

लेकिन जो नही समझा वो भी जी गया...

इस आज से दोस्ती कर लो 

कल से डरो

और आज से पहले वाले कल को मत देखो 

क्योंकि ये आज से पहले वाला कल सबसे घातक है 

इस कल ने ना जाने किस किस को आज में मार डाला

इस कल ने आज तो जीने नही दिया 

बल्कि आज के बाद आने वाला कल भी देखने नही दिया 

परसों की तो छोडिये जनाब....

इसलिए कहता हूँ आज से पहले वाले कल को कभी मत देखो 

आज के बाद वाले कल पर नज़र रखो

उस कल को संवारो 

क्योंकि उस कल के बाद परसों तुम्हारा इंतज़ार कर रहा है

अगर परसों से पहले वाला कल यानी आज के बाद वाला कल 

संवर गया तो तुम तुम्हारे कल को संवार दोगे 

ये वही कल है जो कभी आज से पहले था 

लेकिन अब ये आज के बाद वाला कल है 

और परसों से पहले वाला कल भी यही है 

यानि इस कल पर सब कुछ निर्भर करता है 

आज कल और परसों की इस कश्मकश में 

आज को मत जाने दो 

और कल का इंतज़ार करो 

क्योंकि इस कल के बाद परसों आना है 

आज कल फिर परसों

फिर परसों बन जायेगा आज से पहले वाला कल 

इस कल से प्यार करो लेकिन इससे सावधान रहना

कभी भी वार कर देगा ये कल

आज से कभी धोखा मत करना क्योंकि 

आज है तो कल है 

और ये कल था तो आज है 

परसों की परसों देखना कि कौन क्या था क्योंकि उस दिन परसों आज होगा तुम्हारा.......




गहरी बात है इन तीन खिलाड़ियों को अपनी जिंदगी में उतार लो इन्हे अपना दोस्त बना लो लेकिन इनसे दोस्ती मत करना चाहो तो इनको अपना दुश्मन बना लो लेकिन इनसे दुश्मनी मत करना......


दिल से धन्यवाद,

मोहक शर्मा......

Wednesday, October 27, 2010

इन्हे आज़ाद कश्मीर चाहिए............

कश्मीर पर कोई कुछ बोला...एक मिनिट के लिए ये भूल जाईये.....और एक दिन पीछे आ जाईये.....और अब बताइए कश्मीर पर ऐसी विवादास्पद टिप्पणी देने से पहले कितने लोग जानते थे इन महान अरुन्धिता रॉय को?

मुश्किल से 10 %...

अब  वापस आ जाइये....अब बताइए ? अब कितने लोग जानते है इस महान लेखिका के बारे में?? अब तो सब जान गए होंगे.....
वैसे मीडिया का आजकल खूब फायदा उठाया जा रहा है देखा जाए तो.....
क्यों क्या कहते है आप?
इसका ताज़ा उदाहरण है मिस अरुन्धिता रॉय....
मुझे नही पता की क्या चल रहा है इनके मन में ? क्या ये सच-मुच कश्मीर और कश्मीर में रह रहे लोगो के बारे में इतना सोचती है या फिर चर्चाओ में बने रहने का ही एक मात्र उदेश्य है इनका....
जो भी हो ये तो ये ही जानती है...



कहने का मतलब ये कि आप कुछ बोलते हो तो बोलने से पहले सोच भी लेना चाहिए कि आप दो लोगो के बीच बैठकर बात नही कर रहे

आप आम आदमी के मंच पर बैठे हुए हो और सभी लोग आपको बात सुन रहे है...अपने आप को इतनी बड़ी लेखिका बताती हो और ऐसा बचपना करती हो? 
कश्मीर को भारत से अलग करने की बात करती हो? कहती हो कि कश्मीर को आज़ाद कर देना चाहिए? भूल गयी तुम कि भारत ने कश्मीर को बचाए रखने के लिए क्या क्या कुर्बानियां दी है..कितने जवानों को शहीद होना पड़ा...आज तक उन जवानों के घर गयी कभी तुम? उस माँ के पास गयी जो आज भी ये आस लगाये बेठी है कि उनका बच्चा वापस आएगा लौट के कभी....??

उस विधवा पत्नी का हाल जानने कि कोशिश भी की जो आज तक इंतज़ार करती है अपने पति के आने का ? मुझे तो शर्म आती है आपको लेखिका का दर्जा देते हुए भी....कहो जवानों के घर गयी तुम कभी?जाना कभी उस माँ का हाल और विधवा औरत का हाल?

लेखिका हो तो वैसा कुछ काम भी तो करो...लोगो को जोड़ने की बात करने की बजाए लोगो को तुडवा रही हो?
ये जानते हुए कि वहाँ कब से दिक्कते चली आ रही है...कब से दंगे फसाद चले आ रहे है? कितना संवेदनशील इलाका है वो.......

आप कहते हो कि "मैंने कश्मीरी लोगों के लिए इंसाफ के बारे में कहा है, जो दुनिया के सबसे क्रूर फौजी कब्‍जे में रह रहे हैं.."

पहली बात तो आप जान लो कि जिन फौजियों की आप बात कर रही हो वो क्रूर नही बल्कि देशभक्त है...हमारे देश की सेना को ही तुम ठीक नाम नही दे सकी तो कश्मीरियों के बारे में क्या ख़ाक सोचोगी? बड़ी चिंता है तुम्हे इन्साफ की तो पहले कहाँ थी तुम ? अचानक इतना प्रेम कैसे उमड़ रहा है? कुछ नही है साहब अपने आप को चर्चाओ में रखने की आदत है इन्हे...ये सब बकवासबाजी है...

कम से कम लोग किसी हद्द तक तो रह रहे है चेन अमन से...वो चेन अमन भी छीनना चाहती है आप ?

आप कहती हो कि "मैं कल शोपियां गयी थी – दक्षिणी कश्मीर के सेबों के उस शहर में, जो पिछले साल 47 दिनों तक आसिया और नीलोफर के बर्बर बलात्कार और हत्या के विरोध में बंद रहा था। इन दोनों युवतियों की लाशें उनके घरों के पास की एक पतली सी धारा में पायी गयी थी और उनके हत्यारे अब भी कानून से बाहर हैं"

लेखिका जी किसी के बारे में चिंता करना अच्छी बात है और मुझे सच में अच्छा लगा कि आप इतना कुछ सोचती हो लोगों के लिए...
पर ये तो आपको भी पता होगा कि ऐसा सिर्फ कश्मीर में ही नही भारत के कोने कोने में होता आया है......तो क्यों नही आप अपने लेखिका होने का कर्तव्य निभाएं और उन तमाम लोगों के बारे में लिखना शुरू करे जिनके साथ ऐसी या इनसे भी बुरी घटनाएं हुई है...
आज तक किसी शहीद के घर तो जा नही सकी..चलो कोई बात नही..तो कम से कम इन तमाम लोगो के घर जाकर क्यों नही इनको भी इन्साफ दिलवाती हो?

है दम तो कल से ही शुरू कर दो अपना इन्साफ दिलवाने का ये अभियान? लेकिन आप ऐसा नही करोगी क्योंकि कथनी में और करनी में दिन रात का अंतर होता है....बोलना आसान है मैडम करना बहुत मुश्किल है......... 
चलो छोडो यार मैं तो कहता हूँ पूरे देश में सबको इन्साफ मत दिलवाओ, दिल्ली चले जाओ
दिल्ली में ही ना जाने कितने लोग है,ना जाने कितने गरीब और आम आदमी है जिनकी कोई परख कद्र नही है...वहाँ इन्साफ दिलवाओ सबको 
वहाँ जाकर भी ऐसे विवादास्पद बयान दे देंगी आप तो
तो क्या दिल्ली को भी आज़ाद कर देंना चाहिए तुम्हारी नज़र में..??

ऐसा कुछ तो काम करो कहीं तो इन्साफ दिलवाओ ? मैं क्या ये पूरी अवाम मानेगी कि आप सच में भारत के लिए इतना सोचती है...नही तो मान लीजियेगा कि आपका वो बयान सिर्फ और सिर्फ अपने आप को चर्चाओ में बने रहने के लिए दिया गया था......

तुम कहती हो ना कि "मुझे तरस आता है उस देश पर, जो लेखकों की आत्मा की आवाज को खामोश करता है। तरस आता है, उस देश पर जो इंसाफ की मांग करनेवालों को जेल भेजना चाहता है। "

अगर इतनी ही परेशानी है तो ठीक है ना क्यों नही छोड़ देती ये देश? ऐसा देश जहाँ तुम्हारी बात पर तुम्हे जेल भेजने की मांग की जाती है ? जाओ बहन जाओ नही चाहिए हमें ऐसी महान लेखिका जो देश को तोड़ने की बात करे...........

तुम्हारी ये बातें सुनकर ये बकवासबाज़ी सुनकर मैं एक ही नतीजे पर पहुँच पाया हूँ अब तक 
तुम उन गद्दारों मे से हो जो जिस थाली का खाते है उसी थाली में छेद करते है .....बंद करो अपनी ये चीप और सस्ती सोच के साथ पब्लिसिटी पाने की दुकान......आज़ादी मिली हुई है इसका मतलब ये नही कि कुछ भी आप बकवासबाजी करे.............



Monday, October 25, 2010

रोज मरता हूँ तिल तिल के मरता हूँ.........

बहुत ताकत है मुझ में

बहुत ताकतवर हूँ मैं 

मेरी ताकत देखेंगे

तो सुनो 

सुनाता हूँ अपनी ताकत को 

मैं हूँ तो ये दुनिया चल रही है

कौन कहता है कि भगवान चला रहा है दुनिया 

सुनी सुनाई बातें है साहब ये तो..

वापस कहता हूँ मैं हूँ तो दुनिया चल रही है 

मुझसे चलती है दुनिया

मैं नही तो दुनिया नही 

दुनिया का हर एक शख्स मेरी बदोलत जी रहा है 

ये मेरी अकड नही 

ये मेरा गरूर नही 

ये मेरा ज़रूरत से ज्यादा आत्मविश्वास नही

ये मेरी सच्चाई है

नही!मैं कोई भगवान नही हूँ

न ही किसी सांतवे आसमान से उतरा हूँ 

मैं यही जन्मा हूँ 

मैं यही बड़ा हुआ हूँ

यही खेला हूँ 

यही रोया हूँ 

लेकिन जैसे जैसे बड़ा होता गया 

मेरी ताकत मुझसे दूर होती गयी 

मुझमें डर पैदा होने लगा

इतना डरपोक हो गया मैं ?

धीरे धीरे कमजोर होता गया

अपनों ने ही डरना सिखाया

वो भी कभी ताकतवर रहे होंगे

शायद उन्हें भी किसी ने डरना सिखाया होगा

तभी तो ये परंपरा चलती आई

परंपरा!डरने और डराने की परंपरा

घुट घुट के जीने की परंपरा

लेकिन इतना कमजोर होने के बाद भी बहुत ताकत है मुझ में

आज भी अपनी पर आ जाऊ तो दुनिया हिला के रख दूँगा

लेकिन आज भी डरता हूँ इस ताकत को दिखाने में 

शायद आप अब तक नही समझे कि मैं कौन हूँ 

साहब मैं वो हूँ जो कभी ट्रेन में फंसता है

मैं वो हूँ जो कभी ट्रैफिक में फंसता है

मैं वो हूँ जो कभी बम ब्लास्ट में फंसता है

मैं वो हूँ जिसे हर बात के लिए दबाया जाता है

जनाब फेमस डाएलोग  है ये तो

अब तो समझ गए होंगे कि मैं कौन हूँ

मैं वो हूँ जो पल पल मरता है

तिल तिल के मरता है

हर दिन मरता है रोज मरता है 

कभी भीड़ में 

कभी बस में 

कभी ट्रेन में 

कभी किसी कतार में

कभी किसमें तो कभी किसमें

पेट्रोल डीज़ल के दाम बढते है 

फल-सब्जी के दाम बढते है

राशन पानी के दाम बढते है

और मरता मैं हूँ 

दबता मैं हूँ 

महंगाई नाम की बंदूक से निकली गोली 

जो ना जाने मुझे कहाँ कहाँ से तार तार करती है

मुझे घायल कर देती है 

अधमरा कर छोड़ती है 

रोजमर्रा के काम करता हूँ मैं 

डरता हूँ घर से बाहर निकलते हुए 

घर से मुझे फोन आते है 

हर दो घंटे में फोन आते है 

ये जानने के लिए कि मैं मरा तो नही

फिर दबा तो नही 

यही सच्चाई है 

फोन कर रहा वो शख्स इस बात से मतलब नही रखता कि 

मैं कैसा हूँ क्या कर रहा हूँ 

खान खाया कि नही 

वो ये सब कुछ नही जानना चाहता है 

वो सिर्फ ये जानने के लिए ही फोन करता है कि 

कहीं मैं मर तो नही गया 

कही फिर दब तो नही गया 

कही फिर से किसी ने मुझे अधमरा तो नही कर छोड़ा

सब कुछ जानता हूँ 

लेकिन फिर भी चुप हूँ 

खामोश हूँ

गुस्सा बहुत है अंदर 

लेकिन मैं चुप हूँ  बस चल रहा हूँ और चलते ही जा रहा हूँ 

क्योंकि मेरी भी मज़बूरी है साहब 

मुझे मेरा घर चलाना है 

परिवार को पालना है 

मेरी ताकत देखो सब कुछ जानते हुए मैं फिर भी जी रहा हूँ 

फिर भी खड़ा हूँ 

इस उम्मीद के साथ के एक दिन ये सब कुछ थमेगा

ज़ेहन में ये सवाल लिए मैं कौन हूँ

मैं कौन हूँ

मैं कौन हूँ

अपने आप से कहता हूँ 


मैं आम आदमी हूँ..........



दिल से धन्यवाद,

मोहक शर्मा...........

Saturday, October 23, 2010

कौन हूँ मैं............?

कौन हूँ मैं ?


क्यों पूछ रहे हो मुझसे ये सवाल तुम?


क्या तुम नही जानते कि मैं तुम्हारा प्यार हूँ 


तुम्हारा प्यार सिर्फ तुम्हारा प्यार


सच्चा प्यार बेइंतिहाँ प्यार करती हूँ तुमसे


कहाँ ढूढ़ रहे हो मुझे


इस दुनिया में?


हा हा हा इस मतलबी दुनिया में तुम प्यार ढूंढ रहे हो?


वाह! क्या तुम अब तक नही जागे?


जागो, उठो और जान लो कि इस दुनिया में प्यार कहीं नही है


तुम्हारी किस्मत अच्छी है जो इस दुनिया में प्यार ना होने के बावजूद तुम्हे मैं 


प्यार के रूप में मिल गयी


अब तक ढूढ़ रहे हो मुझे?


अपनी चेतना को कहो कि जागे


और मुझे देखे , आजमाए|

कहा ढूंढ रहे हो मुझे 


अरे मैं इधर हूँ 


हाँ मैं इधर ही हूँ तुम्हारे पास, तुम्हारे दिल में, तुम्हारी साँसों में, तुम्हारी हर रग रग में मैं हूँ


तुम्हारे साथ निरंतर चल रही हूँ,तुम्हारे साथ सोती हूँ ,तुम्हारे साथ उठती हूँ


तुम क्या करते हो क्या नही करते ? मैं हर एक पल में तुम्हारा साथ देती हूँ


कब परेशां होते हो कब खुश होते हो कब हँसते हो कब रोते हो


मुझे पता होता है इसलिए तो मैं भी तुम्हारे साथ हँसती हूँ जब रोते हो तो रोती हूँ


कितना प्यार करते हो ना तुम भी मुझसे.जब मैं रोती हूँ तो तुम भी रो देते हो


तुम्हे पता है जब तुम्हे चोट लगती है तो दर्द मुझे भी होता है


जब तुम कराहते हो तो मैं भी कराह उठती हूँ


जब तुम थकते हो मैं भी थक जाती हूँ


कितना प्यार करती हूँ तुमसे


जब जब तुम्हे मेरी ज़रूरत पड़ती है तब तब मैं तुम्हे आवाज़ देती हूँ


तब तब बताती हू कि क्या सही है क्या गलत


तुम्हारे फैसले भी मेरी मर्ज़ी से होते है


मुझे तुम्हारे साथ रहना पसंद है 


विश्वास करो,मैं तुम्हारे साथ रह रही हूँ तभी तुम अब तक जिंदा हो


वरना कब के मर गए होते


लोगो को कहते फिरते हो कि तुम्हे कोई प्यार नही करता


लोगो को कहते फिरते हो कि तुम प्यार के भूखे हो


लोगो को कहते फिरते हो कि तुम्हे तुम्हारा प्यार नही मिल पाया


लोगो को कहते हो,बस कहते हो और कहते हो


यकीं करो मेरा तुम जो कहते हो वो गलत कहते हो


तुम्हे तुम्हारा प्यार मिला है 


तुम अकेले नही हो


मैं हूँ तुम्हारे साथ 


जब तुम आये थे इस दुनिया में


मैं तभी तुम्हारी जिंदगी में आ गयी थी


लेकिन तुमने मुझे पहचाना ही नही


लेकिन आज खुल के बात कर रहे हो मुझसे


ये वादा करती हूँ तुमसे 


जब जाओगे ये दुनिया छोडकर 


तब ही जाऊँगी मैं भी


मैं सिर्फ तुम्हारी हूँ तुमसे जी जान से प्यार करती हूँ


तुम्हारी हूँ मैं सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी


किसी और की नही हो सकती....जब तक जिंदा हूँ तुम्हारी ही रहूंगी....




मैं तुम्हारी आत्मा हूँ................






दिल से धन्यवाद,


मोहक शर्मा...........

Thursday, October 14, 2010

जीवन की आपाधापी में........(मेरी गलतियाँ)

"मैं जब जब अकेले बैठे हुए कुछ सोचने लगता हूँ तो तो बस हरिवंश राय बच्चन जी की यही पंक्तिया याद आ जाती है मुझे......" 



जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ
जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला।



"जब जब सोचने लगता हूँ कि दुनिया के इस मेले में आ जाने के बाद मैंने क्या पाया क्या खोया, तब तब मेरा दिल मुझे ये पंक्तिया याद दिला देता है "


जिस दिन मेरी चेतना जगी मैंने देखा
मैं खड़ा हुआ हूँ इस दुनिया के मेले में,
हर एक यहाँ पर एक भुलाने में भूला
हर एक लगा है अपनी अपनी दे-ले में
कुछ देर रहा हक्का-बक्का, भौचक्का-सा,
आ गया कहाँ, क्या करूँ यहाँ, जाऊँ किस जा?
फिर एक तरफ से आया ही तो धक्का-सा
मैंने भी बहना शुरू किया उस रेले में,
क्या बाहर की ठेला-पेली ही कुछ कम थी,
जो भीतर भी भावों का ऊहापोह मचा,
जो किया, उसी को करने की मजबूरी थी,
जो कहा, वही मन के अंदर से उबल चला,
जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ
जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला।




"कितने ऐसे फैसले थे जो मैंने गलत लिए,कितनी ऐसी बातें थी जो मैंने गलत कही,कितने ऐसे मौके थे जो मैंने गवा दिए,कितने ऐसे अरमां थे जो मैं उस समय में पूरे ना कर सका,कितनी बार मैंने इंसान को गलत पहचाना,अच्छे को बुरा और बुरे को अच्छा पहचाना.....
जब जब ये सब कुछ सोचता हूँ तो कुछ ये पंक्तिया मुझे मेरी गलतियों का बखूबी अहसास कराती है...."


मेला जितना भड़कीला रंग-रंगीला था,
मानस के अन्दर उतनी ही कमज़ोरी थी,
जितना ज़्यादा संचित करने की ख़्वाहिश थी,
उतनी ही छोटी अपने कर की झोरी थी,
जितनी ही बिरमे रहने की थी अभिलाषा,
उतना ही रेले तेज ढकेले जाते थे,
क्रय-विक्रय तो ठण्ढे दिल से हो सकता है,
यह तो भागा-भागी की छीना-छोरी थी;
अब मुझसे पूछा जाता है क्या बतलाऊँ
क्या मान अकिंचन बिखराता पथ पर आया,
वह कौन रतन अनमोल मिला ऐसा मुझको,
जिस पर अपना मन प्राण निछावर कर आया,
यह थी तकदीरी बात मुझे गुण दोष न दो
जिसको समझा था सोना, वह मिट्टी निकली,
जिसको समझा था आँसू, वह मोती निकला।
जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ
जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला।



"जिसे करील की झाड समझता था असल में वो गुलाब का फूल था,जिसे मैं अपने घर में सजाना चाहता था,लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी, इतनी गलतियाँ की मैंने अपनी ज़िन्दगी में,सोचता हूँ तो डर लगता है की अभी तो ज़िन्दगी पड़ी है.....
काश जल्द ही मर जाऊ ताकि ऐसा कुछ और ना देखना पड़े,लेकिन जब ये पंक्तियाँ आती है मेरे इस ज़ेहन में तो एक नयी उर्जा दे जाती है,शायद यही उर्जा है जो मुझे अब तक जिंदा रखे हुए है...."



मैं कितना ही भूलूँ, भटकूँ या भरमाऊँ,
है एक कहीं मंज़िल जो मुझे बुलाती है,
कितने ही मेरे पाँव पड़े ऊँचे-नीचे,
प्रतिपल वह मेरे पास चली ही आती है,
मुझ पर विधि का आभार बहुत-सी बातों का।
पर मैं कृतज्ञ उसका इस पर सबसे ज़्यादा -
नभ ओले बरसाए, धरती शोले उगले,
अनवरत समय की चक्की चलती जाती है,
मैं जहाँ खड़ा था कल उस थल पर आज नहीं,
कल इसी जगह पर पाना मुझको मुश्किल है,
ले मापदंड जिसको परिवर्तित कर देतीं
केवल छूकर ही देश-काल की सीमाएँ
जग दे मुझपर फैसला उसे जैसा भाए
लेकिन मैं तो बेरोक सफ़र में जीवन के
इस एक और पहलू से होकर निकल चला।
जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ
जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला


दिल से धन्यवाद......

                                                                                                                                     मोहक शर्मा.....

Sunday, August 29, 2010

इमोशनल अत्याचार या सेक्स अत्याचार.......




पिछले कई दिनों से बहुत लोगों से एक कार्यक्रम के बारे में सुन रहा हूँ मैं....कुछ दिनों पहले उसी कार्यक्रम को देखने का अवसर भी प्राप्त हुआ मुझे....इसे देखने के बाद एक अजीब सी विडम्बना थी मेंरे अंदर.


मोटे अक्षरों में,मैं सोचा रहा था कि क्या है ये बकवास,जहाँ कुछ भी होता हुआ नज़र आ रहा है,लड़का लड़की में कहीं कोई मान मर्यादा ही नही रही है,जहा सिर्फ और सिर्फ अश्लील हरकतें दिख रही है


वैसे आज कल जिसे देखो बिंदास टी.वी पर प्रसारित कार्यक्रम इमोशनल अत्याचार का दीवाना बना हुआ है विशेषकर युवा वर्गजो कि खुद ही इस कार्यक्रम का केंद्र भी हैं. क्या यह कार्यक्रम सच में किसी पर हुए इमोशनल अत्याचार को दिखाता है किसी भी दृष्टि कोण से देखकर ऐसा तो नजर बिल्कुल नही आताइसे देख कर तो यही लगता है कि यह केवल सेक्स की बात ही दर्शको को दिखाता है. हर एपिसोड में एक लड़का और और लड़की केवल किस करते या सेक्स की बातें ही करते नजर आते हैं. भावानाएँ तो कही भी नजर नही आती हैं 


क्या आज के युवा इतने बेवकूफ हैं कि एक दो बार मिली किसी भी लड़की या लड़के से बस सेक्स के बारें में ही बात करते हैं. और कोई भी लड़का किसी भी लड़की से 4-5 तमाचे खाने के बाद भी हँसता रहता हैक्या सच में ऐसा होता है ?  
 हम क्या दिखा रहे हैं टी वी पर युवाओं कोअगर यही दिखाना है तो इसका नाम बदल देना चाहिए. कम से कम इमोशन के नाम पर सेक्स कि बाते तो नही देखने को मिलेगीऔर अगर यह कार्यक्रम इसी नाम से दिखाना है तो चैनेल पर कम से कम इसके प्रसारण का समय तो बदल ही देना चाहिए.

देर रात इसे दिखा सकते है कम से कम किशोर बच्चे तो इसे देखने से बचेगेक्योंकि  कार्यक्रम के निर्माता का कहना है कि आज के युवा बहुत ही प्रैक्टिकल व पाजिटिव हैं  उनको अपनी किसी भी भावना को दिखाने में किसी भी तरह की कोई शर्म नही आती. और उन्हें सच कहने में किसी भी प्रकार की कोई शर्म नही आती है?


''इमोशनल अत्याचार'' का सीजन टू आरम्भ हो चुका है और पहले ही एपिसोड के बाद इस चैनेल की लोकप्रियता और भी बढ गयी है.क्या यह सब केवल अपने चैनेल की लोकप्रियता बढाने के लिए ही है.  

कार्यक्रम के होस्ट प्रवेश राना व लडकियों के बीच भी कुछ ऐसी बाते होती हैं जिन्हें अनजान लोग आपस में शायद नही कर सकते हैं.लडकियां भी ऐसी-ऐसी बाते व गाली देती हैं जिन को छिपाने के लिए बीप की बार बार आवाजे आती हैं.    
क्या यह सच में  यह इमोशनल अत्याचार है या  सेक्स अत्याचार.