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Friday, August 6, 2010

काश हम आजाद होते.....



बहुत समय से मेरे ज़हन में एक सवाल उठता आया है. सवाल का जवाब बहुत आसान है.और देखा जाए तो सवाल भी आसान है.जनाब हर बच्चा बच्चा जानता होगा इस सवाल का जवाब. सवाल ये है कि हमे आज़ाद हुए कितने साल हो गए है ?
आपका जवाब यही है ना कि 60 साल हो गए है करीब हमें अंग्रेजो की गुलामी छोड़े !!!!
लेकिन क्या सिर्फ सवाल का जवाब जान लेना ही काफी है?

नही...!!!! मैं जब भी गहनता से इस आसान लेकिन गंभीर सवाल के बारे में सोचता हू तो पाता हूँ कि आज बेशक 50 साल से भी ज्यादा हो गये है हमे आज़ाद हुए लेकिन हम आज भी गुलाम है,हम पहले भी गुलाम थे और आगे भी गुलाम ही रहेंगे. बस फर्क सिर्फ इतना है कि पहले अंग्रजो की गुलामी किया करते थे और आज भी जिन्हें हम आम आदमी कहते है वो आज अपनों की ही गुलामी किया करते है.

अजीब उलझन है.लेकिन क्या करे आम आदमी? इसकी भी कुछ मजबूरियां है.इसे अपना घर चलाना है इसे अपने बीवी बच्चो को, माँ बाप को पालना है. अपना परिवार चलाना है.आज आम आदमी सब कुछ जानता है कि किस तरह से उसका शोषण हो रहा है किस तरह से इस महगाई में वो अपना पेट काट कर, अपने बच्चो का पेट काट कर इन नेताओ का पेट भर रहा है.

लेकिन वो ऐसा क्यों कर रहा है? क्या आज तक आपने कभी सोचा है इसका कारण?
मैंने भी नही सोचा था लेकिन एक बार सोच के देखियेगा शायद आप भी उसी नतीजे पर आ पहुँचेगे जहाँ मैं खड़ा हूँ.
आज का आम आदमी बहुत समझदार है.वो सब समझता है.सब जानता है.लेकिन सब कुछ जानने के बाद भी वो चुप है.वो चुप है मगर वो बहुत कुछ कहना चाहता है उसके मन में बहुत बाते है जिन्हें वो बाहर लाना चाहता है.बहुत गुस्सा  है लेकिन फिर भी वो शांत है,क्योकि वो डरता है. वो डरता है इस काली राजनीति से, वो डरता है इस समय के चक्र से कि पता नही कब उसका मुद्दा नेताओ के सांसद में पहुच जाए और कब वो इस दुनिया की भीड़ से गायब करवा दिया जाए. क्योकि ये नेता, नेता नही है.ये नेता सिर्फ नेता का लबादा ओड़े वो दरिन्दे है जो खुद अपने आप के भी सगे नही.

पर एक हद्द तक आम आदमी का डरना लाज़मी भी है क्योकि सिर्फ इस डर के सहारे ही वो मरते मरते अपने परिवार को बहुत कुछ दे जाता है.ये आम आदमी चल रहा है निरंतर चल रहा है.वो थक गया है वो रुकना चाहता है थोडा आराम करना चाहता है.किस वृक्ष के नीचे बैठ कर ये महसूस करना चाहता है कि वो क्यों चल रहा है.किस के लिए चल रहा है .
अपने परिवार के लिए या इस दुनिया के लिए ? असल में आम आदमी एक भेड़ है जो बस यही जानता है कि उसे भेड़चाल में चलना है.वास्तव में वो अपनों के लिए नही बल्कि उस मतलबी दुनिया के लिए चल रहा है जो उसे लगातार देख रही है.
जो उसे लगातार देख रही है कि कही वो इस दौड़ में पीछे तो नही रह गया? क्योकि इसे पता है कि अगर मैं थोडा भी पीछे छूट गया तो इस दुनिया के कांटो भरे सवाल मुझे जीने नही देंगे और तब जब में टूट जाउंगा तब ये लोग मेरे परिवार को भी नही जीने देंगे.......इसलिए मेरी मजबूरी है कि मुझे चलाना है और बस चलते जाना है. आज मैं भी चल रहा हू. आप भी चल रहे हो. सब चल रहे है. सिर्फ एक डर से और वो है दुनिया के लोगो का डर.

आज ये राजनीती इतना विकराल रूप ले चुकी है की आम आदमी जहा जाता है उसे राजनीती झेलनी ही पड़ती है.हर हालत में पिसता सिर्फ आम आदमी ही है. चाहे वो नेताओ की राजनीती हो या दुनियादारी की. राजनीती तो राजनीती है. राजनीती अमर है.ये कभी मर नही सकती.
आम आदमी एक दिन मर जायेगा लेकिन उसके मरने के बाद भी राजनीती उसका पीछा नही छोड़ेगी. ये एक कड़वा सच है.जो हर आम आदमी जानते हुए भी नही जानना चाहता.

2 comments:

vimlesh brijwall said...

ap achha likhte hai ... ap bahut bhavuk bhi h :)

मोहक शर्मा said...

धन्यवाद विमलेश जी...
मैं भी बस यूँ ही लिख लेता हूँ कभी कभी...