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Monday, October 25, 2010

रोज मरता हूँ तिल तिल के मरता हूँ.........

बहुत ताकत है मुझ में

बहुत ताकतवर हूँ मैं 

मेरी ताकत देखेंगे

तो सुनो 

सुनाता हूँ अपनी ताकत को 

मैं हूँ तो ये दुनिया चल रही है

कौन कहता है कि भगवान चला रहा है दुनिया 

सुनी सुनाई बातें है साहब ये तो..

वापस कहता हूँ मैं हूँ तो दुनिया चल रही है 

मुझसे चलती है दुनिया

मैं नही तो दुनिया नही 

दुनिया का हर एक शख्स मेरी बदोलत जी रहा है 

ये मेरी अकड नही 

ये मेरा गरूर नही 

ये मेरा ज़रूरत से ज्यादा आत्मविश्वास नही

ये मेरी सच्चाई है

नही!मैं कोई भगवान नही हूँ

न ही किसी सांतवे आसमान से उतरा हूँ 

मैं यही जन्मा हूँ 

मैं यही बड़ा हुआ हूँ

यही खेला हूँ 

यही रोया हूँ 

लेकिन जैसे जैसे बड़ा होता गया 

मेरी ताकत मुझसे दूर होती गयी 

मुझमें डर पैदा होने लगा

इतना डरपोक हो गया मैं ?

धीरे धीरे कमजोर होता गया

अपनों ने ही डरना सिखाया

वो भी कभी ताकतवर रहे होंगे

शायद उन्हें भी किसी ने डरना सिखाया होगा

तभी तो ये परंपरा चलती आई

परंपरा!डरने और डराने की परंपरा

घुट घुट के जीने की परंपरा

लेकिन इतना कमजोर होने के बाद भी बहुत ताकत है मुझ में

आज भी अपनी पर आ जाऊ तो दुनिया हिला के रख दूँगा

लेकिन आज भी डरता हूँ इस ताकत को दिखाने में 

शायद आप अब तक नही समझे कि मैं कौन हूँ 

साहब मैं वो हूँ जो कभी ट्रेन में फंसता है

मैं वो हूँ जो कभी ट्रैफिक में फंसता है

मैं वो हूँ जो कभी बम ब्लास्ट में फंसता है

मैं वो हूँ जिसे हर बात के लिए दबाया जाता है

जनाब फेमस डाएलोग  है ये तो

अब तो समझ गए होंगे कि मैं कौन हूँ

मैं वो हूँ जो पल पल मरता है

तिल तिल के मरता है

हर दिन मरता है रोज मरता है 

कभी भीड़ में 

कभी बस में 

कभी ट्रेन में 

कभी किसी कतार में

कभी किसमें तो कभी किसमें

पेट्रोल डीज़ल के दाम बढते है 

फल-सब्जी के दाम बढते है

राशन पानी के दाम बढते है

और मरता मैं हूँ 

दबता मैं हूँ 

महंगाई नाम की बंदूक से निकली गोली 

जो ना जाने मुझे कहाँ कहाँ से तार तार करती है

मुझे घायल कर देती है 

अधमरा कर छोड़ती है 

रोजमर्रा के काम करता हूँ मैं 

डरता हूँ घर से बाहर निकलते हुए 

घर से मुझे फोन आते है 

हर दो घंटे में फोन आते है 

ये जानने के लिए कि मैं मरा तो नही

फिर दबा तो नही 

यही सच्चाई है 

फोन कर रहा वो शख्स इस बात से मतलब नही रखता कि 

मैं कैसा हूँ क्या कर रहा हूँ 

खान खाया कि नही 

वो ये सब कुछ नही जानना चाहता है 

वो सिर्फ ये जानने के लिए ही फोन करता है कि 

कहीं मैं मर तो नही गया 

कही फिर दब तो नही गया 

कही फिर से किसी ने मुझे अधमरा तो नही कर छोड़ा

सब कुछ जानता हूँ 

लेकिन फिर भी चुप हूँ 

खामोश हूँ

गुस्सा बहुत है अंदर 

लेकिन मैं चुप हूँ  बस चल रहा हूँ और चलते ही जा रहा हूँ 

क्योंकि मेरी भी मज़बूरी है साहब 

मुझे मेरा घर चलाना है 

परिवार को पालना है 

मेरी ताकत देखो सब कुछ जानते हुए मैं फिर भी जी रहा हूँ 

फिर भी खड़ा हूँ 

इस उम्मीद के साथ के एक दिन ये सब कुछ थमेगा

ज़ेहन में ये सवाल लिए मैं कौन हूँ

मैं कौन हूँ

मैं कौन हूँ

अपने आप से कहता हूँ 


मैं आम आदमी हूँ..........



दिल से धन्यवाद,

मोहक शर्मा...........

4 comments:

Ajay Singh Chauhan said...

Shaandar Prastuti. Aapne itne achche alfaazon mein jo marm darshaya hai wo kaabil-e-tareef hai. Likhte Raho....

RAJESH KUMAR, ADVOCATE said...

BHAI MOUT K PICHE KYU PADE HO HATH DHO K

मोहक शर्मा said...

क्योंकि मौत ही है जो हमारी जिंदगी का सबसे बड़ा कड़वा सच है.....लेकिन लोग इसे स्वीकारते नही है....मानो या ना मानो पर आप भी उनमे से एक ही है....
वैसे मेरे इस ब्लॉग का मौत से दूर दूर तक कोई वास्ता नही है.....ये ब्लॉग आम आदमी को लेकर लिखा है मैंने.....

http://www.seemanchal.com said...

lajwaab- man mastishk pr chot ki hai aapne- keep it up